माँड लुक और वैल्यू
ये अपनी मर्जी से जीते है, लेकिन जीवन को लेकर सोच पहले की पीढ़ी के मुकाबले ज्यादा सकरात्मक और व्यापक दिखती है| यह पीढ़ी बड़े शांपिंग माँल्स में इठलाती है , ब्रांडेड कपडे पहनती है, प्यार का खुल ka इज़हार करती है, जिन्दगी में पैसे को बड़ी जरुरत मानती है, लेकिन साथ ही यह भी मानती है की मूल्यों के बिना क्या जीना| एक तरफ उसने लीविस की जींस को अपनाया है तो दूसरी तरफ आत्मनिर्भरता उसका पहला ध्येय है|
किसी बने बनाये रास्ते पर चलना हमेशा से आसान रहा है , लेकिन नया रास्ता बनाने में मेहनत है और जोखिम भी | लाइफ में एड़वेंचर और थ्रिल की मुरीद युवा पीढ़ी ने चुनौती को स्वीकार किया है और मूल्यों को आज की जरुरत के हिसाब से ढल रही है| रिश्ते में सच , दोस्ती में समर्पण और काम की ईमानदारी | उनसे अंधे होकर पुराने मूल्यों को ही पकडे नही रखा है, बल्कि नए मूल्य गढ़े है | दया को ही ले लीजिये, स्टुडेंट है| चाहती है हर सख्स अपने पैरो पर खड़ा हो| समय निकालकर भिखारियों को पढ़ाती है| कहाँ से आया यह जज्बा | बताती है,'पापा हमेशा भिखारियों को भीख देकर उनकी मदद किया करते थे | यह तरीका मुझे पसंद नहीं आया | अच्छा हो की उन्हें अपनी रोटी खुद कमाना सिखाया जाये | तो मई अपनी तरफ से छोटी सी कोशिश कर रही हूँ| मैं उन्हें भिक्षुक की श्रेणी से बाहर निकालकर मजदूर बनाना चाहती हूँ | यह पूछना बेईमानी है की दया कहाँ की हैं, क्योंकी ऐसी लड़कियां और लड़के आपको चंडीगढ़, डेल्ही, लखनऊ, मुंबई, देहरादून कही भी मिल सकती है| हाँ दया लखनऊ की है | युवाओं का यह तर्क दमदार है की जिस तरह भाषा के साथ दूसरी भाषाओं का समागम उसे समृद्ध ही बनाता है, वही सिद्धांत मूल्यों के साथ भी काम करता है| बदलते ज़माने के साथ नवीनता जरुरी है, लेकिन नए के स्वागत में पुराने को सिरे से बिसराना खतरनाक भी हो सकता है, मार्केटिंग मनेजर सत्येन्द्र कुमार पाण्डेय कहते है कि-, ' अनुभव के साथ कही गयी बात और बिना किसी तथ्य के कही गयी बात में जमीं आसमान का अंतर होता है | जबकि मेरा ( राकेश कुमार कसौधन ) का मानना है की, ' बुजुर्गो के खयालात अपनी जगह सही है और यूथ की अपनी जगह | समय, स्थिति और परिस्थिति के मुताबिक हमें सिद्धांतो को मोड़ना चाहिए| ऐसे सिद्धांतो का क्या करना, जो छोटे बड़े की क़द्र करना भुला दे|'
चालढाल, लिबास, बोलचाल से माँड दिखते ये युवा दर असल उस हिंदुस्तान कि इबादत लिख रहे है जिसकी कल्पना हमारे महापुरुषों ने कि थी | किसी को नुक्सान पंहुचा कर आगे बढ़ना सही नही है , यह युवा पीढ़ी कि सोच है| वह दुसरे कि लकीर छोटी करने में नहीं , बल्कि बड़ी लकीर खीचने में यकीन करते है| भ्रष्टाचार के पंख फैलाते इस युग में भी ईमानदारी के पछ में वोट देना आज क यूथ के इसी आचरण कि गवाही है | ईमानदारी, जो सहजता से जीवन में उतर आई है, चाहे उसकी पब्लिक लाइफ हो या पर्सनल लाइफ |
भले सच आज किसी चौराहे के कोने पर दुबका सा लगता हो और झूठ चमकदार गाड़ी में फर्राटे से गुजरता , लेकिन हमारे युवा नहीं मानते कि जीवन में सच का कोई बिकल्प हो सकता है | देश के 64 फीसदी युवा दिल से कहते है कि हाँ , जीवन में ईमानदारी से रहा जा सकता है और उनकी इस बात में ईमानदारी को सहजता से उतरने कि ललक है | सच तो यह है आज से पहले के समाज में प्रतिभा कि इतनी पुच कभी नहीं रही | पहले पैसे देकर नौकरियां लगवाई जाती थी, हजारो लाखो में घूस देनी पड़ती थी , पर आज छोटे शहरो के मामूली परिवारों से आये लड़के- लड़कियां भी अपनी योग्यता के मुताबिक बीस- तीस हजार क़ी नौकरी आसानी से पा जाते है |
लाइफ अगर स्टाइल से जीनी है तो मनी चाहिए और भरपूर चाहिए | पैसों क़ी खनक युवाओं को भी लुभाती है | सिर्फ 41 % युवा ब्लैकमनी को गलत मानते है और 59 % का कहना है क़ी सब चलता है | लेकिन सब चलता है के पक्ष में युवाओं का रुझान यह नही दर्शाता क़ी वे कालाधन कमाने क़ी होड़ में है और घूसखोरी तथा भ्रष्टाचार के समर्थन में खड़े है | दरअसल युवा किसी कलि कमाई क़ी हिमायत नहीं कर रहे, बल्कि अपनी सेलरीड इनकम के अलावा इजीमनी कमाना उन्हें बुरा नहीं लगता | इजीमनी यानि शेयर निबेश में आदि| यह कोई चोरी नहीं है , बल्कि पैसा कमाने का जायज तरीका है| हाँ , इसमें मेहनत नहीं , बल्कि अपने पैसो का निवेश करना पड़ता है और सावधान रहना पड़ता है| एड डिजाइनर जैसे पेसे में रचे- बसे गुलजार क लिए इतना ही काफी है क़ी वह ईमानदारी से पैसा कमा रहा है ,'मेरे नीचे और मेरे ऊपर क्या हो रहा है , यह मेरा सर दर्द नही है |' दरअसल यह पीढ़ी पैसे क़ी भूख से इनकार नही करती , मगर उसे जायज तरीके से कमाने का फन भी जानती है | लखनऊ KGMC क़ी MBBS मेडिकल स्टूडेंट डॉ अन्सुम गुप्ता क़ी यह बात कोई बुजुर्ग सुने तो उसका लोहा मान ले, "जिस तरह जिन्दगी में खाने पीने क़ी जरूरत है, उसी तरह मूल्यों क़ी भी जरूरत है | अगर ये मूल्य न हों तो जीवन अर्थहीन हो जायेगा |
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कौन आज़ाद है?
Who is Aazad? We all are Aazad every living being is Aazad at least that’s how god intended us to be or as I would like to believe.Aazad means FREE (referring to freedom), freedom of thought, expression etc. as stated in Indian Constitution and similarly stated as LIBERTY in U.S and other countries. The question is, are we really Aazad? Or is this just another farce to make us happy?Does freedom mean the democracy that we celebrate on 26th of Jan every year or the 15th of Aug every year in India?It’s all chaotic no one exactly knows how to refer themselves to freedom and democracy. No one has ever bothered to know and no one has ever bothered to explain. It’s all there in those big endless volumes in the library. But all that really needed is few basic facts to live our normal day to day life. Now I intend to search for the answer collaboratively. From here on I refer my self to Aazad by name and will search for the real meaning of it. Come join me lets come together and search for the truth.I use BHARATAAZAD.BLOGSPOT.COM as the channel to reach out as and Indian to the Indians. I welcome those from other countries to contribute to our cause.Apart this site has lots of Inspirational Stories , Quotes, Events and Should Know Facts to learn from.
"any persone is not perferct, any contury is not perfect, but every person is perfect in his mind"
ReplyDeleteआज की युवा पीढ़ी पागल है अपने को आगे बढ़ने के लिए ,कुछ कर गुजरने के लिए,हाँ ये गलत है की जो अपने बुजुर्गो को ठुकरा देते है,वो गलत है, हमने कहा की everyman is nt perfect and every man is perfect, कुछ लोग गलत है तो इसका मतलब हर किसी को गलत नही कहा जा सकता | हमारे बुजुर्ग उस पुराने पेड़ की तरह है जो बूढ़े तो हो गये है लेकिन उस पर हम जैसे युवाओं को फलों की तरह लाद रखा है, युवा उस टहनियों की तरह है जो फलो को बनाते है लेकिन जिसकी जड़ उन बुढो के जड़ो में है |
बुजुर्गो ने तो उगते सूरज के साथ ढलते सूरज को भी देखा है,युवाओं ने तो अभी उगता सूरज और गुड आफ्टरनून देखा है |
इसलिए आगे बढ़ना है तो हमे उन जड़ो को पानी देते रहना है |